गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है
गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है कहते हैं बहार का समाँ है बिखरी हुई पत्तियाँ हैं गुल की टूटी हुई शाख़-ए-आशियाँ है जिस दिल से उभर रहे थे नग़्मे पहलू में वो आज नौहा-ख़्वाँ है हम ही नहीं पाएमाल तन्हा ऐ दोस्त तबाह इक जहाँ है 'जालिब' वो कहाँ है इश्क़ तेरा प्यारे वो ग़ज़ल तिरी कहाँ है

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