मैं वह धनु हूँ
मैं वह धनु हूँ, जिसे साधने में प्रत्यंचा टूट गई है। स्खलित हुआ है बाण, यदपि ध्वनि दिग्दिगन्त में फूट गई है-- प्रलय-स्वर है वह, या है बस मेरी लज्जाजनक पराजय, या कि सफलता ! कौन कहेगा क्या उस में है विधि का आशय ! क्या मेरे कर्मों का संचय मुझ को चिन्ता छूट गई है-- मैं बस जानूँ, मैं धनु हूँ, जिस की प्रत्यंचा टूट गई है!

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