तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें ज़िंदगी देखिए क्या रंग दिखाती है हमें मरकज़-ए-दीदा-ओ-दिल तेरा तसव्वुर था कभी आज इस बात पे कितनी हँसी आती है हमें फिर कहीं ख़्वाब ओ हक़ीक़त का तसादुम होगा फिर कोई मंज़िल-ए-बे-नाम बुलाती है हमें दिल में वो दर्द न आँखों में वो तुग़्यानी है जाने किस सम्त ये दुनिया लिए जाती है हमें गर्दिश-ए-वक़्त का कितना बड़ा एहसाँ है कि आज ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें

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