उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए हम लोग ज़रा देर से बाज़ार में आए सच ख़ुद से भी ये लोग नहीं बोलने वाले ऐ अहल-ए-जुनूँ तुम यहाँ बेकार में आए ये आग हवस की है झुलस देगी उसे भी सूरज से कहो साया-ए-दीवार में आए बढ़ती ही चली जाती है तन्हाई हमारी क्या सोच के हम वादी-ए-इंकार में आए

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