फिर तिरी तितली-नुमा सूरत मुझे याद आ गई
मुझ को वो लम्हा अभी भूला नहीं
एक कोने में कई लोगों के साथ
गुफ़्तुगू में मुंहमिक खोया हुआ
मेरी आँखों ने कभी तुझ सा कोई देखा न था
मैं तुझे तकने लगा
देर तक तकता रहा
आँख से कानों से होंटों से तुझे तकता रहा
क्या अजब दीवानगी थी
रश्क आया बख़्त पे अपने मुझे
लफ़्ज़ के असरार मुझ पे वा हुए
घंटियाँ सी मेरे कानों में बजीं
नूर के सैलाब में डूबी हुई इस शाम की
एक इक साअत तिरे हम-राह है
रुक गया है वक़्त इस इक मोड़ पर
मैं जुदाई के लिए मजबूर था
तू जुदाई पर जहाँ मसरूर था