वामांदगी-ए-शौक़
खड़ी रहो इसी जगह इसी तरह खड़ी रहो सफ़ेद बर्फ़ की चटान क़तरा क़तरा गल रही है गलने दो सियाह और तवील रात धीरे धरे ढल रही है ढलने दो मिरी निगाह के हिसार में यूँही खड़ी रहो मैं तुम से और दूर हो रहा हूँ मुझ से मत डरो इन उँगलियों पे ओस के निशान थे जो मिट गए लबों पे एक अजनबी का नाम था जो बुझ गया हिरन की आँख ख़ौफ़ की चमक से भी तही हुई दरिंदे जंगलों को छोड़ कर कहीं चले गए खड़ी रहो इसी जगह इसी तरह खड़ी रहो

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