सैगंधी
बदी भरी ये बोरियाँ न जाने कौन मोड़ तक हमारे साथ जाएँगी सफ़ेद चादरों में किस ने रात को छुपा लिया हमारी ज़िल्लतों से किस ने अपने उज़्व उज़्व को सजा लिया कि आज नाफ़ के क़रीब ख़्वाहिशों की भीड़ है उधर वो गुम्बदों की गूँज जंगलों को जाने वाले रास्ते पलट पड़े तिरी गली में हर तरफ़ से आ रहे हैं भेड़िये किवाड़ खोल देख कैसा जश्न है हवा भरा वो चाँद सात इंच नीचे आ गया ग़िज़ा मिलेगी चियूँटियों को तेरा काम हो गया हमारे नाख़ुनों के मैल से तेरे बदन के घाव भर गए ये हादसा भी हो गया मगर कहाँ से बीच में ये आसमान आ गया

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