पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात यूँ बूँद बूँद उतरी हमारे घरों में रात कुछ भी दिखाई देता नहीं दूर दूर तक चुभती है सूइयों की तरह जब रगों में रात वो खुरदुरी चट्टानें वो दरिया वो आबशार सब कुछ समेट ले गई अपने परों में रात आँखों को सब की नींद भी दी ख़्वाब भी दिए हम को शुमार करती रही दुश्मनों में रात बे-सम्त मंज़िलों ने बुलाया है फिर हमें सन्नाटे फिर बिछाने लगी रास्तों में रात

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