निस्बत रहे तुम से सदा हज़रत निज़ामुद्दीन-जी
निस्बत रहे तुम से सदा हज़रत निज़ामुद्दीन-जी माँगूँ मैं क्या इस के सिवा हज़रत निज़ामुद्दीन-जी आँखों पे यूँ छाए हो तुम हर जा नज़र आए हो तुम कैसा जुनूँ मुझ को हुआ हज़रत निज़ामुद्दीन-जी हाथों से तुम ने जो किया रौशन वफ़ा का इक दिया आँधी की ज़द में वो जला हज़रत निज़ामुद्दीन-जी लेते थे अल्लाह नाम जो जपते थे दिल में राम जो तुम ने किया सब का भला हज़रत निज़ामुद्दीन-जी 'ख़ुसरव' की आँखों से कभी देखे अगर तुम को कोई अहवाल होगा उस का क्या हज़रत निज़ामुद्दीन-जी

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