नया उफ़क़
क्या तुम को ये पता है ऐ ना-समझ रफ़ीक़ो रोज़-ए-अज़ल से जिस पर तुम गामज़न रहे हो वो रास्ता ख़ला की सरहद से जा मिला है मशअल जलाओ देखो बिफरी हुई हवा में आईना-ए-सदा में चेहरा किसी उफ़ुक़ का फिर से उभर रहा है

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