नए अहद का नया सवाल
ये बात रोज़-ए-अज़ल से तय है ज़मीन जिस्मों का बोझ उठाएगी आसमाँ पर रहेंगी रूहें मगर कोई है जो ये बताए हमारी परछाइयों की क़ब्रें कहाँ बनेंगी?

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