मुझ को मिलना है 'वहीद-अख़्तर' से
ज़िंदगी ये तिरा एहसान बहुत है मुझ पर 'आज़मी' ज़ीस्त है हर मोड़ पे जो साथ मिरे उस की यादों में बसर होते हैं दिन रात मिरे एक एहसान नया कर मुझ पर ज़िंदगी, मौत से तू मेरी सिफ़ारिश कर दे मुझ को मिलना है 'वहीद-अख़्तर' से

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