ला-ज़वाल होने का
रात की खुली खिड़की बंद होने वाली है चाँद के कटोरे में ओस भरने वाली है ये अजब सफ़र इस का अब तमाम होता है ला-ज़वाल होने का देखो क्या बहाना है कल भी इक हक़ीक़त था आज भी फ़साना है आसमान की जानिब सब के हाथ उठते हैं उस के ख़ून की सुर्ख़ी बर्ग-ओ-बार लाएगी बे-नमाज़ बंदों पर यानी उन दरिंदों पर हर क़दम मसाइब का इंतिज़ार लाएगा

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