ख़्वाब
नग़्मगी आरज़ू की बिखरी है रात शर्मा रही है अपने से होंट उम्मीद के फड़कते हैं पाँव हसरत के लड़खड़ाते हैं दूर पलकों से आँसुओं के क़रीब नींद दामन समेटे बैठी है ख़्वाब ताबीर के शिकस्ता दिल आज फिर जोड़ने को आए हैं

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