गुम-शुदा
खुरदुरे जिस्म के नशेब-ओ-फ़राज़ जानने की हवस में जिस की ज़बाँ और सब ज़ाइक़े भुला बैठी वो निहत्ता अकेला रात के वक़्त एक दिल-दोज़ चीख़ के हम-राह जंगलों की तरफ़ गया था कभी और फिर लौट कर नहीं आया अब वो शायद कभी न आएगा उस के साए की दोनों आँखें मगर मौत से उस की बे-ख़बर हैं अभी इस की आमद की मुंतज़िर हैं अभी

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