जहाँ मैं होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
जहाँ मैं होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा इसी उमीद पे कब से धड़क रहा है दिल तिरे हुज़ूर किसी रोज़ ये तलब होगा मकाँ तो होंगे मकीनों से सब मगर ख़ाली यहाँ भी देखूँ तमाशा ये एक शब होगा कोई नहीं है जो बतलाए मेरे लोगों को हवा के रुख़ के बदलने से क्या ग़ज़ब होगा न जाने क्यूँ मुझे लगता है ऐसा हाकिम-ए-शहर जो हादसा नहीं पहले हुआ वो अब होगा

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