एक मंज़र
नींद की सोई हुई ख़ामोश गलियों को जगाते गुनगुनाते मिशअलें पलकों पे अश्कों की जलाए चंद साए फिर रहे थे रात जब हम ख़्वाब की दुनिया से वापस आ रहे थे

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