कुसुम चयन
जो न बने वे विमल लसे विधु-मौलि मौलि पर। जो न बने रमणीय सज, रमा-रमण कलेवर। बर बृन्दारक बृन्द पूज जो बने न बन्दित। जो न सके अभिनन्दनीय को कर अभिनन्दित। जो विमुग्धा कर हुए वे न बन मंजुल-माला। जो उनसे सौरभित प्रेम का बना न प्याला। कर के नृप-कुल-तिलक क्रीट-रत्नों को रंजित। कर न सके जो कलित-कुसुम-कुल महिमा व्यंजित। जो न सुबासित हुआ तेल उनसे वह आला। जिसने सुखमय व्यथित-जीव-जीवन कर डाला। जो न गौरवित हुए वे परस गुरु-पद-पंकज। जो न लोकहित करी बनी उनकी सुन्दर रज। तो किसी काल में क्यों करे विकच-कुसुम-चय का चयन। कर भावुक अवमानना भाव भरा भावुक सुजन।

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