एक ख़ुश-ख़बरी
हँसो कि सुर्ख़ ओ गर्म ख़ून फिर सफ़ेद हो गया हँसो कि नुक़्ता-ए-उमीद फिर ख़ला के दाएरे में आज क़ैद हो गया हँसो कि दश्त-ए-आरज़ू में थक थका के सब बगूले सो गए हँसो कि शहर ज़िंदगी का बे-फ़सील हो गया हँसो कि साया-ए-सलीब फिर तवील हो गया

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