दरिया-ए-ख़ूँ
पानी की लय पे गाता इक कश्ती-ए-हवा में आया था रात कोई सारे बदन पे उस के लिपटे हुए थे शोले होंटों से ओस बूँदें पैहम गिरा रहा था सरगोशियों के बादल छाए हुए थे हर-सू दरिया-ए-ख़ूँ रगों में बे-ताब हो रहा था मैं हो रहा था पागल!

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