अहद-ए-हाज़िर की दिल-रुबा मख़्लूक़
ज़र्द बल्बों के बाज़ुओं में असीर सख़्त बे-जान लम्बी काली सड़क अपनी बे-नूर धुँदली आँखों से पढ़ रही है नविश्ता-ए-तक़दीर बंद कमरों के घुप अँधेरों में बिल्लियाँ पी रही हैं दूध के जाम होटलों सिनेमा-घरों के क़रीब चमचमाती हुई नई कारें और पनवाड़ियों की दूकानें और कुछ टोलियाँ फ़क़ीरों की पर्स वालों के इंतिज़ार में हैं अध-फटे पोस्टरों के पैराहन आहनी बिल्डिंगों के जिस्मों पर कितने दिलकश दिखाई देते हैं बस की बेहिस नाशिस्तों पर बैठी दिन के बाज़ार से ख़रीदी हुई आरज़ू ग़म उमीद महरूमी नींद की गोलियाँ गुलाब के फूल केले अमरूद संतरे चावल पैंट गुड़िया शमीज़ चूहे-दान एक इक शय का कर रही है हिसाब अहद-ए-हाज़िर की दिल-रुबा मख़्लूक़!

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