आरज़ू
सोते सोते चौंक उठी जब पलकों की झंकार आबादी पर वीराने का होने लगा गुमान वहशत ने पर खोल दिए और धुँदले हुए निशान हर लम्हे की आहट बन गई साँपों की फुन्कार ऐसे वक़्त में दिल को हमेशा सूझा एक उपाए काश कोई बे-ख़्वाब दरीचा चुपके से खुल जाए

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