गर्द को कुदूरतों की धो न पाए हम
गर्द को कुदूरतों की धो न पाए हम दिल बहुत उदास है कि रो न पाए हम वजूद के चहार सम्त रेगज़ार था कहीं भी ख़्वाहिशों के बीज बो न पाए हम रूह से तो पहले दिन ही हार मान ली बोझ अपने जिस्म का भी ढो न पाए हम दश्त में तो एक हम थे और कुछ न था शहर के हुजूम में भी खो न पाए हम एक ख़्वाब देखने की आरज़ू रही इसी लिए तमाम उम्र सो न पाए हम

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