भटक गया कि मंज़िलों का वो सुराग़ पा गया
भटक गया कि मंज़िलों का वो सुराग़ पा गया हमारे वास्ते ख़ला में रास्ता बना गया सुराही दिल की आँसुओं की ओस से भरी रही इसी लिए अज़ाब-ए-हिज्र उस को रास आ गया सराब का तिलिस्म टूटना बहुत बुरा हुआ कि आज तिश्नगी का ए'तिबार भी चला गया तमाम उम्र ख़्वाब देखने में मुंहमिक रहा और इस तरह हक़ीक़तों को वाहिमा बना गया

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