उलटी समझ
जाति ममता मोल जो समझें नहीं। तो मिलों से हम करें मैला न मन। देश-हित का रंग न जो गाढ़ा चढ़ा। तो न डालें गाढ़ में गाढ़ा पहन।1। धूल झोंकें न जाति आँखों में। फाड़ देवें न लाज की चद्दर। दर बदर फिर न देश को कोसें। मूँद हित दर न दें पहन खद्दर।2। तो गिना जाय क्यों न खुदरों में। क्यों उगा दे न बीज बरबादी। काम की खाद जो न बन पाई। देश-हित-खेत के लिए खादी।3। हित सचाई बिना नहीं होगा। लोग ताना अनेक तन देखें। कात लें सूत, लें चला करघे। सैकड़ों गज गजी पहन देखें।4। पैन्ह मोटा न पेट मोटा हो। सब बुरी चाट बाँट में न पड़े। छल कपट का न पैन्ह लें जामा। हथ-कते सूत के पहन कपड़े।5।

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