अक्स को क़ैद कि परछाईं को ज़ंजीर करें
अक्स को क़ैद कि परछाईं को ज़ंजीर करें साअत-ए-हिज्र तुझे कैसे जहाँगीर करें पाँव के नीचे कोई शय है ज़मीं की सूरत चंद दिन और इसी वहम की तश्हीर करें शहर-ए-उम्मीद हक़ीक़त में नहीं बन सकता तो चलो उस को तसव्वुर ही में तामीर करें अब तो ले दे के यही काम है इन आँखों का जिन को देखा नहीं उन ख़्वाबों की ताबीर करें हम में जुरअत की कमी कल की तरह आज भी है तिश्नगी किस के लबों पर तुझे तहरीर करें उम्र का बाक़ी सफ़र करना है इस शर्त के साथ धूप देखें तो उसे साए से ताबीर करें

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