आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई आ रही है जिस्म की दीवार गिरने की सदा इक अजब ख़्वाहिश थी जो अब के बरस पूरी हुई इस ख़िज़ाँ-आसार लम्हे की हिकायत है यही इक गुल-ना-आफ़्रीदा की हवस पूरी हुई आग के शोलों से सारा शहर रौशन हो गया हो मुबारक आरज़ू-ए-ख़ार-ओ-ख़स पूरी हुई कैसी दस्तक थी कि दरवाज़े मुक़फ़्फ़ल हो गए और इस के साथ रूदाद-ए-क़फ़स पूरी हुई

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