आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है
आहट जो सुनाई दी है हिज्र की शब की है ये राय अकेली मेरी नहीं है सब की है सुनसान सड़क सन्नाटे और लम्बे साए ये सारी फ़ज़ा ऐ दिल तेरे मतलब की है तिरी दीद से आँखें जी भर के सैराब हुईं किस रोज़ हुआ था ऐसा बात ये कब की है तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को जो बात बहुत पहले करनी थी अब की है मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है

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