चाँद तारों का बन
मोम की तरह जलते रहे हम शहीदों के तन रात-भर झिलमिलाती रही शम-ए-सुब्ह-ए-वतन रात-भर जगमगाता रहा चाँद तारों का बन तिश्नगी थी मगर तिश्नगी में भी सरशार थे प्यासी आँखों के ख़ाली कटोरे लिए मुंतज़िर मर्द ओ ज़न मस्तियाँ ख़त्म, मद-होशियाँ ख़त्म थीं, ख़त्म था बाँकपन रात के जगमगाते दहकते बदन सुब्ह-दम एक दीवार-ए-ग़म बन गए ख़ार-ज़ार-ए-अलम बन गए रात की शह-रगों का उछलता लहू जू-ए-ख़ूँ बन गया कुछ इमामान-ए-सद-मक्र-ओ-फ़न उन की साँसों में अफ़ई की फुन्कार थी उन के सीने में नफ़रत का काला धुआँ इक कमीं-गाह से फेंक कर अपनी नोक-ए-ज़बाँ ख़ून-ए-नूर-ए-सहर पी गए रात की तलछटें हैं अंधेरा भी है सुब्ह का कुछ उजाला भी है हमदमो! हाथ में हाथ दो सू-ए-मंज़िल चलो मंज़िलें प्यार की मंज़िलें दार की कू-ए-दिलदार की मंज़िलें दोश पर अपनी अपनी सलीबें उठाए चलो

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