आज़ादी-ए-वतन
कहो हिन्दोस्ताँ की जय कहो हिन्दोस्ताँ की जय क़सम है ख़ून से सींचे हुए रंगीं गुलिस्ताँ की क़सम है ख़ून-ए-दहक़ाँ की क़सम ख़ून-ए-शहीदाँ की ये मुमकिन है कि दुनिया के समुंदर ख़ुश्क हो जाएँ ये मुमकिन है कि दरिया बहते बहते थक के सो जाएँ जलाना छोड़ दें दोज़ख़ के अंगारे ये मुमकिन है रवानी तर्क कर दें बर्क़ के धारे ये मुमकिन है ज़मीन-ए-पाक अब नापाकियों को ढो नहीं सकती वतन की शम्-ए-आज़ादी कभी गुल हो नहीं सकती कहो हिन्दोस्ताँ की जय कहो हिन्दोस्ताँ की जय वो हिन्दी नौजवाँ यानी अलम-बरदार-ए-आज़ादी वतन की पासबाँ वो तेग़-ए-जौहर-दार-ए-आज़ादी वो पाकीज़ा शरारा बिजलियों ने जिस को धोया है वो अँगारा कि जिस में ज़ीस्त ने ख़ुद को समोया है वो शम्-ए-ज़िंदगानी आँधियों ने जिस को पाला है इक ऐसी नाव तूफ़ानों ने ख़ुद जिस को सँभाला है वो ठोकर जिस से गीती लर्ज़ा-बर-अंदाम रहती है वो धारा जिस के सीने पर अमल की नाव बहती है छुपी ख़ामोश आहें शोर-ए-महशर बन के निकली हैं दबी चिंगारियाँ ख़ुर्शीद-ए-ख़ावर बन के निकली हैं बदल दी नौजवान-ए-हिन्द ने तक़दीर ज़िंदाँ की मुजाहिद की नज़र से कट गई ज़ंजीर ज़िंदाँ की कहो हिन्दोस्ताँ की जय कहो हिन्दोस्ताँ की जय कहो हिन्दोस्ताँ की जय......

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