अंधेरा
रात के हाथ में इक कासा-ए-दरयुज़ा-गरी ये चमकते हुए तारे ये दमकता हुआ चाँद भीक के नूर में माँगे के उजाले में मगन यही मल्बूस-ए-उरूसी है यही उन का कफ़न इस अंधेरे में वो मरते हुए जिस्मों की कराह वो अज़ाज़ील के कुत्तों की कमीं-गाह ''वो तहज़ीब के ज़ख़्म'' ख़ंदक़ें बाढ़ के तार बाढ़ के तारों में उलझे हुए इंसानों के जिस्म और इंसानों के जिस्मों पे वो बैठे हुए गिध वो तड़खते हुए सर मय्यतें हात-कटी पाँव-कटी लाश के ढाँचे के इस पार से उस पार तलक सर्द हवा नौहा ओ नाला ओ फ़रियाद-कुनाँ शब के सन्नाटे में रोने की सदा कभी बच्चों की कभी माओं की चाँद के तारों के मातम की सदा रात के माथे पे आज़ुर्दा सितारों का हुजूम सिर्फ़ ख़ुर्शीद-ए-दरख़्शाँ के निकलने तक है रात के पास अंधेरे के सिवा कुछ भी नहीं रात के पास अंधेरे के सिवा कुछ भी नहीं

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