इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है
इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है हुस्न मुश्ताक़-ए-दिल-नवाज़ी है अश्क ख़ूनीं सूँ जो किया है वज़ू मज़हब-ए-इश्क़ में नमाज़ी है जो हुआ राज़-ए-इश्क़ सूँ आगाह वो ज़माने का फ़ख़्र-ए-राज़ी है पाक-बाज़ाँ सूँ यूँ हुआ मफ़्हूम इश्क़ मज़मून-ए-पाक-बाज़ी है जा के पहुँची है हद्द-ए-ज़ुल्मत कूँ बस-कि तुझ ज़ुल्फ़ में दराज़ी है तजरबे सूँ हुआ मुझे ज़ाहिर नाज़ मफ़्हूम बे-नियाज़ी है ऐ 'वली' ऐश-ए-ज़ाहिरी का सबब जल्वा-ए-शाहिद-ए-मजाज़ी है

Read Next