मेरा किया था मैं टूटा कि बिखरा रहा
मेरा किया था मैं टूटा कि बिखरा रहा तेरे हाथों में तो इक खिलौना रहा इक ज़रा सी अना के लिए उम्र भर तुम भी तन्हा रहे मैं भी तन्हा रहा तेरे जाने का मंज़र ही ग़म-ख़्वार था ज़िंदगी भर जो आँखों से लिपटा रहा मेरा एहसास सदियों पे फैला हुआ ऐसा आँसू जो पलकें बदलता रहा घर की सब रौनक़ें मुझ से और मैं 'वसीम' ताक़ पर इक दिए जैसा जलता रहा

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