गुणगान
गणपति गौरी-पति गिरा गोपति गुरु गोविन्द। गुण गावो वन्दन करो पावन पद अरविन्द।1। देव भाव मन में भरे दल अदेव अहमेव। गिरि गुरुता से हैं अधिक गौरव में गुरुदेव।2। पाप-पुंज को पीस गुरु त्रिविध ताप कर दूर। हैं भरते उर-भवन में भक्ति-भाव भरपूर।3। हर सारा अज्ञान-तम बन भवसागर-पोत। गुरु तज उर में ज्ञान को कौन जगावे जोत।4। जनरंजन होता नहीं कर-गंजन तम-मान। दृग-रुज-भंजन जो न गुरु करते अंजन दान।5। कौन बिना गुरु के हरे गौरव-जनित-गरूर। करे समल मानस विमल बने सूर को सूर।6। बिना खुली जन आँख को खोल न पाता आन। जानकार गुरु के बिना रहता जगत अजान।7। बाद क्यों न गुरु से करें चेले कलि अनुरूप। रीति न जानत विनय की हैं अविनय के रूप।8। गुरु-सेवा करते रहें गहें न उनकी भूल। जो न चढ़ावें फूल हम तो न उड़ावें धूल।9। होता है सिर को नवा नर जग में सिरमौर। बनता है बन्दन किये बन्दनीय सब ठौर।10।

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