हँसती रहने देना
जब आवे दिन तब देह बुझे या टूटे इन आँखों को हँसती रहने देना! हाथों ने बहुत अनर्थ किये पग ठौर-कुठौर चले मन के आगे भी खोटे लक्ष्य रहे वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे पर आँखों ने हार, दुःख, अवसान, मृत्यु का अंधकार भी देखा तो सच-सच देखा इस पार उन्हें जब आवे दिन ले जावे पर उस पार उन्हें फिर भी आलोक कथा सच्ची कहने देना अपलक हँसती रहने देना जब आवे दिन!

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