घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है,
बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है।
भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारिन-सी,
ये सुबहे-फ़रवरी बीमार पत्नी से भी पीली है।
बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल के सूखे दरिया में,
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है।
सुलगते ज़िस्म की गर्मी का फिर एहसास कैसे हो,
मुहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है।