ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी
ये अमीरों से हमारी फ़ैसलाकुन जंग थी, फिर कहाँ से बीच में मस्जिद औ' मंदर आ गए। जिनके चेह्रे पर लिखी थी जेल की ऊँची फ़सील, रामनामी ओढ़कर संसद के अन्दर आ गए। देखना, सुनना व सच कहना इन्हें भाता नहीं, कुर्सियों पर अब वही बापू के बंदर आ गए। कल तलक जो हाशिए पर भी न आते थे नज़र, आजकल बाज़ार में उनके कलेण्डर आ गए।

Read Next