हीरामन बेज़ार है उफ़्! किस कदर महँगाई से,
आपकी दिल्ली में उत्तर-आधुनिकता आई है।
टी० वी० से अख़बार तक हैं, जिस्म के मोहक कटाव,
ये हमारी सोच है, ये सोच की गहराई है।
सबका मालिक एक है, रटते भी हैं, लड़ते भी हैं,
सदियों के संघर्ष से क्या दृष्टि हमने पाई है।
जो व्यवस्था को बदलने के लिए बेताब थे,
क़ैद उनके बंगले में इस मुल्क की रानाई है।
रहनुमा धृतराष्ट्र के पद-चिन्ह पर चलने लगे,
आप चुप बैठे रहें ये क़ौम की रुस्वाई है।