जिस्म की भूख कहें या हवस का ज्वार कहें
सतही जज़्बे को मुनासिब नहीं है प्यार कहें
बारहा फ़र्द की अज़्मत ने जिसे मोड़ दिया
हम भला कैसे उसे वक़्त की रफ़्तार कहें
जलते इन्सान की बदबू से हवा बोझल है
फिर भी इसरार है मौसम को ख़ुशगवार कहें
आर्मस्ट्राँग तो कहता है चाँद पत्थर है
दौरे-हाज़िर में किसे हुस्न का मेयार कहें