अदम सुकून में जब कायनात होती है
'अदम' सुकून में जब कायनात होती है, कभी-कभार मेरी उससे बात होती है। कहीं हो ज़िक्र अक़ीदत से सर झुका देना, बड़ी अज़ीम ये औरत की ज़ात होती है। उफ़ुक पे खींच दे पर्दा, चराग़ जल जाए, हम अगर सोच लें तो दिन में रात होती है। नवीन जंग छिड़ी है इधर विचारों में, रोज़ इस मोर्चे पर शह व मात होती है। समझ के तन्हा न इस शख़्स को दावत देना, 'अदम' के साथ ग़मों की बरात होती है।

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