सहमते स्वर-3
आज मैंने सुई में डोरा डाल लिया उतनी ही बड़ी सिद्धि जितनी जग जाती एक कविता लिख लेने में। विगत अड़तालीस वर्षों से तुमने मुझे ऐसा निकम्मा बना दिया कि कुरता-कमीज़ में बटन तक टाँकने का सीखा सलीका नहीं। कुछ भी करो हँसने का मौक़ा तो न दो औरों को। तुम्हें ही दोषी ठहराएंगी पीढ़ियाँ सीढ़िया गढ़न में तुमने सब वार दिया कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया मुझसे निठल्ले को।

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