जा पड़े चुप हो के जब शहर-ए-ख़मोशाँ में 'नज़ीर'
जा पड़े चुप हो के जब शहर-ए-ख़मोशाँ में 'नज़ीर' ये ग़ज़ल ये रेख़्ता ये शेर-ख़्वानी फिर कहाँ

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