ईद
यूँ लब से अपने निकले है अब बार-बार आह करता है जिस तरह कि दिल-ए-बे-क़रार आह हम ईद के भी दिन रहे उम्मीद-वार आह हो जी में अपने ईद की फ़रहत से शाद-काम ख़ूबाँ से अपने अपने लिए सब ने दिल के काम दिल खोल खोल सब मिले आपस में ख़ास ओ आम आग़ोश-ए-ख़ल्क़ गुल-बदनों से भरे तमाम ख़ाली रहा पर एक हमारा कनार आह क्या पूछते हो शोख़ से मिलने की अब ख़बर कितना ही जुस्तुजू में फिरे हम इधर इधर लेकिन मिला न हम से वो अय्यार फ़ित्नागर मिलना तो इक तरफ़ है अज़ीज़ो कि भर-नज़र पोशाक की भी हम ने न देखी बहार आह रखते थे हम उमीद ये दिल में कि ईद को क्या क्या गले लगावेंगे दिल-बर को शाद हो सो तू वो आज भी न मिला शोख़-ए-हीला-जू थी आस ईद की सो गई वो भी दोस्तो अब देखें क्या करे दिल-ए-उम्मीद-वार आह उस संग-दिल की हम ने ग़रज़ जब से चाह की देखा न अपने दिल को कभी एक दम ख़ुशी कुछ अब ही उस की जौर-ओ-तअद्दी नहीं नई हर ईद में हमें तो सदा यास ही रही काफ़िर कभी न हम से हुआ हम-कनार आह इक़रार हम से था कई दिन आगे ईद से यानी कि ईद-गाह को जावेंगे तुम को ले आख़िर को हम को छोड़ गए साथ और के हम हाथ मलते रह गए और राह देखते क्या क्या ग़रज़ सहा सितम-ए-इंतिज़ार आह क्यूँ कर लगें न दिल में मिरे हसरतों के तीर दिन ईद के भी मुझ से हुआ वो कनारा-गीर इस दर्द को वो समझे जो हो इश्क़ का असीर जिस ईद में कि यार से मिलना न हो 'नज़ीर' उस के उपर तो हैफ़ है और सद-हज़ार आह

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