ये छपके का जो बाला कान में अब तुम ने डाला है
ये छपके का जो बाला कान में अब तुम ने डाला है इसी बाले की दौलत से तुम्हारा बोल-बाला है नज़ाकत सर से पाँव तक पड़ी क़ुर्बान होती है इलाही उस बदन को तू ने किस साँचे में ढाला है ये दिल क्यूँकर निगह से उस की छिदते हैं मैं हैराँ हूँ न ख़ंजर है न नश्तर है न जमधर है न भाला है बलाएँ नाग काले नागिनें और साँप के बच्चे ख़ुदा जाने कि इस जूड़े में क्या क्या बाँध डाला है न ग़ोल आता है ख़ूबाँ का सरक ऐ दिल मैं कहता हूँ ये कम्पू की नहीं पलटन ये परियों का रिसाला है जिसे तुम ले के बेदर्दी से पाँव में कुचलते हो ये दिल मैं ने तो ऐ साहब बड़ी मेहनत से पाला है 'नज़ीर' इक और लिख ऐसी ग़ज़ल जो सुन के जी ख़ुश हो अरी इस ढब की बातों ने तो दिल में शोर डाला है

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