वो सनम जो मेहर-एज़ार है उसे हम से मिलने में आर है
वो सनम जो मेहर-एज़ार है उसे हम से मिलने में आर है वले अपना जो दिल-ए-ज़ार है वो हज़ार जान से निसार है मिले जब से कूचे में उस के जा ये सुरूर-ए-ऐश है बरमला लब-ए-दिल है और वो नक़्श-ए-पा बर-ए-जाँ है और दर-ए-यार है वो निगह जो उस की है फ़ित्ना-गर उसे मश्क़-ए-सैद है पेश-तर है जो दिल का ताइर-ए-तेज़-पर उसी बाज़ का ये शिकार है वो मिज़ा लगा के जो एक सिनान गई फिर तो कर न दिल अब फ़ुग़ाँ कई ऐसे होवेंगे इम्तिहाँ ये अभी तो पहला ही वार है जो बहार गुल पे रही है तुल हमें क्या जो हुस्न की पी है मुल जिन्हें चाहिए है वो रश्क-ए-गुल उन्हें गुल से क्या सरोकार है जो बुतों को देवें दिल और दीं रखें उस को ये ब-अलम क़रीं भला कहिए क्या उसे हम-नशीं ये अजब कुछ उन का शिआर है कई दिन हुए हैं 'नज़ीर' अब कि ख़फ़ा है हम से वो ग़ुंचा-लब उसे क्या वले हमें रोज़-ओ-शब न तो सब्र है न क़रार है

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