शहर-ए-दिल आबाद था जब तक वो शहर-आरा रहा
शहर-ए-दिल आबाद था जब तक वो शहर-आरा रहा जब वो शहर-आरा गया फिर शहर-ए-दिल में क्या रहा क्या रहा फिर शहर-ए-दिल में जुज़-हुजूम-ए-दर्द-ओ-ग़म थी जहाँ फ़ौज-ए-तरब वाँ लश्कर-ए-ग़म आ रहा आ रहा आँखों में दम तो भी न आया वो सनम हैफ़ किस से पोछिए जा कर कि वो किस जा रहा

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