शब-ए-मह में देख उस का वो झमक झमक के चलना
शब-ए-मह में देख उस का वो झमक झमक के चलना किया इंतिख़ाब मह ने ये चमक चमक के चलना रविश-ए-सितम में आना तो क़दम उठाना जल्दी जो रह-ए-कम में आना तो ठिठक ठिठक के चलना न धड़क हो जो निकलना तो सर-ए-ख़तर पे ठोकर जो नज़र गुज़र से डरना तो झिजक झिजक के चलना जो नवाज़िशों पे आना तो रगड़ के दोश जाना जो सर-ए-इताब होना तो फटक फटक के चलना है खुबा 'नज़ीर' अब तो मिरे जी में उस सनम का वो अकड़ के धज दिखाना वो हुमक हुमक के चलना

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