मुझे इस झमक से आया नज़र इक निगार-ए-राना
मुझे इस झमक से आया नज़र इक निगार-ए-राना कि ख़ुर उस के हुस्न-ए-रुख़ को लगा तकने ज़र्रा-आसा ख़द-ओ-ख़ाल ख़ूबी-आगीं लब-ए-लाल पाँ से रंगीं नज़र आफ़त-ए-दिल-ओ-दीं मिज़ा सद-मुज़र्रत-अफ़ज़ा पड़ी रुख़ पे ज़ुल्फ़-ए-पुर-ख़म मिसी रश्क-ए-रंग-ए-नीलम ग़रज़ इस तरह का आलम कि परी कहे अहा-हा कहा हम ने ऐ समन-बर परी-चेहरा महर-पैकर जो चली हो यूँ झमक कर कहो अज़्म है किधर का है ये वक़्त सैर-ए-बुसताँ फलें हम भी साथ ऐ जाँ कहा सुन के ये अरे म्याँ कोई तुम भी हो तमाशा है ये आश्नाई अगली न शनाख़्त इक दो दिन की जो है दिल-दही की मर्ज़ी तो है लोच फिर ये कैसा कहा जब 'नज़ीर' हम ने ''यही दिल हैं हम तो रखते'' तो कहा जो नेकी होवे तो फिर उस का पूछना क्या

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