किस के लिए कीजिए जामा-ए-दीबा-तलब
किस के लिए कीजिए जामा-ए-दीबा-तलब दिल तो करे है मुदाम दामन-ए-सहरा-तलब काम रवा हों भला उस से हम अब किस तरह उस को तमन्ना नहीं हम हैं तमन्ना-तलब किस से कहीं क्या करें है ये तमाशा की बात वो तो है पर्दा-नशीं हम हैं तमाशा-तलब कहिए तो किस किस के अब ग़ौर करे वो तबीब जिस के तलबगार हों लाख मुदावा-तलब एक तमन्ना हो तो यार से कहिए 'नज़ीर' दिल है पुर-अज़-आरज़ू कीजिए क्या क्या तलब

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