हो क्यूँ न तिरे काम में हैरान तमाशा
हो क्यूँ न तिरे काम में हैरान तमाशा या-रब तिरी क़ुदरत में है हर आन तमाशा ले अर्श से ता-फ़र्श नए रंग नए ढंग हर शक्ल अजाइब है हर इक शान तमाशा अफ़्लाक पे तारों की झलकती है तिलिस्मात और रू-ए-ज़मीं पर गुल-ओ-रैहान तमाशा जिन्नात परी देव मलक हूर भी नादिर इंसान अजूबा है तो हैवान तमाशा जब हुस्न के जाती है मुरक़्क़ा पे नज़र आह क्या क्या नज़र आता है हर इक आन तमाशा चोटी की गुंधावट कहीं दिखलाती है लहरें रखती है कहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशान तमाशा गर इश्क़ के कूचे में गुज़र कीजे तो वाँ भी हर वक़्त नई सैर है हर आन तमाशा मुँह ज़र्द बदन ख़ुश्क जिगर चाक अलमनाक ग़ुल शोर तपिश नाला-ओ-अफ़ग़ान तमाशा हम पस्त निगाहों की नज़र में तो 'नज़ीर' आह सब अर्ज़-ओ-समा की है गुलिस्तान तमाशा

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